दिल की हंसी
Friday, May 31, 2013
कुकड़ूँ कूँ
कहाँ छुप गये तुम कठोर
अब तुम्हारी आवाज़ ही नही आती
अब तो अलार्म से उठना पड़ता है
तुम्हारी कुकड़ूं कूं के बिना
अब तो सुबह भी सूनी है
काश फिर से सुन पाती
कुकड़ू कूँ............
2 comments:
Anonymous said...
बहुत अच्छे प्रतीक का उपयोग किया है ... पंकज
May 31, 2013 at 11:12 AM
रमा शर्मा, जापान
said...
आभार पंकज जी
June 1, 2013 at 4:42 AM
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2 comments:
बहुत अच्छे प्रतीक का उपयोग किया है ... पंकज
आभार पंकज जी
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